बेरोजगारी की धूल में,
हाथ में डिग्री लिए खड़े हैं,
सपने टूटे हुए, आशाएँ छूटी हुई,
भविष्य की चिंता में डूबे हुए।
नौकरी की तलाश में भटकते हैं,
दिन-रात, हर दरवाजे पर दस्तक,
लेकिन हर जगह से निराशा मिलती है,
और उम्मीदें टूटती जाती हैं।
बेरोजगारी की मार से,
परिवार की जिम्मेदारी दबाव में,
माता-पिता की आशाएँ टूटती हैं,
भाई-बहनों की जरूरतें अधूरी हैं।
लेकिन फिर भी हम नहीं हारते,
हार नहीं मानते, आगे बढ़ते हैं,
नई उम्मीदें जगाते हैं,
नई राहें तलाशते हैं।
बेरोजगारी की लड़ाई में,
हम मजबूत बनते हैं,
नई चुनौतियों का सामना करते हैं,
और अपने सपनों को पूरा करते हैं।
